Simran Ansari

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द हाॅन्टिंग मर्डर्स : पार्ट - 2




मोबाइल के फ्लैश की रोशनी में, तृषा को वहां पर अपने अलावा कोई भी और नज़र नहीं आ रहा था, लेकिन फिर भी एक अजीब सा डर उस के मन में बैठा हुआ था इसलिए वह उस जगह पर अपने अकेले होने की वजह से और ज्यादा डर रही थी, क्योंकि इतनी सारी अफवाहें जो सुन रखी थी उस ने  इस घर के बारे में और इस के साथ ही अभी एक लाश भी तो मिली थी यहां पर, इस घर से ही; ऐसे हालातों में भला किस को डर नहीं लगेगा वह भी जब आप का साथी गायब हो जाए और अचानक से अंधेरा भी!

फिर भी हिम्मत कर के वह मोहित को आवाज लगाती हुई एक तरफ बढ़ रही थी, तभी उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे कि उस के पीछे कोई है तो यह सोच कर ही डर के मारे उस की हलक सूख गई, तृषा ने अपने गले में फंसा हुआ थूक निगल कर अपना गला तर किया और डरते हुए उस ने एक तरफ अपने कदम बढ़ाए कि तभी उसे पीछे से अपने कंधे पर किसी का हाथ महसूस हुआ, वह चौंक कर पीछे पलटी तो वहां पर काफी अंधेरा था, अपने कांपते हाथों से मोबाइल का फ्लैश ऊपर कर के उस ने देखा तो उस के सामने वहां पर मोहित खड़ा था।

"यू...हाउ डेयर यू मोहित! ऐसा कोई करता है क्या? वो भी ऐसी जगह पर।" - बोलते हुए घबराई हुई सी तृषा जल्दी से मोहित के गले लग गई।

"लेकिन मैंने क्या किया?" - मोहित ने इस तरह से पूछा जैसे कि उसे कुछ पता ही ना हो।

"कहां गायब हो गए थे तुम, इडियट कहीं के और यह लाइट्स भी तुम ने ही ऑफ की थी ना, मुझे डराने के लिए..." - मोहित  के गले लगी हुई तृषा उस के कंधे पर मारती हुई बोली

"अरे पागल लड़की, मैं तो बस अभी आया हूं यहां पर, थोड़ा सा आगे चला गया था मैं उस तरफ , लेकिन तेरी चीख सुनी तो भागता हुआ आया यहां पर और...वह बल्ब.."  - मोहित की नज़र जब बल्ब पर पड़ी तो उसे देखता हुआ वह चुप हो गया।

"फ्यूज हो गया क्या बल्ब?" - तृषा ने नासमझी से सवाल किया।

"नहीं, शायद स्विच में कुछ प्रॉब्लम होगी, तु रुक यही मैं देखता हूं!" - मोहित अपनी शर्ट पर कसे हुए तृषा के हाथ हटाता हुआ बोला

"मैं भी साथ चलती हूं ना, फ्लैश दिखा दूंगी, अंधेरा है!" - तृषा ने अपने हाथ नहीं हटाएं और मोहित के साथ ही आती हुई बोली तो मोहित उस की ऐसी हालत पर मुस्कुरा दिया।

"सीधा सीधा नहीं बोल सकती कि डर लगता है तुझे मेरे बिना।" - मोहित तृषा के हाथ की तरफ देख कर मुस्कुराते हुए बोला जो कि अभी भी मोहित के कंधे पर उस की शर्ट पर कसे हुए थे।

मोहित की बात सुन कर तृषा सकपका गई और उस ने जल्दी से अपने हाथ मोहित के कंधे से हटा लिया बोली -  "अपना काम कर तु और मुझे ना डर वर नहीं लगता।"

"हां, इतनी ज़ोर से तो मैं चीखा था ना कि पास के पुलिस स्टेशन तक आवाज गई होगी।" - मोहित अपनी हंसी दबाता हुआ बोला और तभी वह बल्ब वापस जल गया, मोहित ने स्विच में कुछ किया था।

"मतलब भूत नहीं है यहां पर, इतना तो पक्का हो गया, यहां अंदर तक आ कर!" - तृषा जैसे राहत की सांस लेती हुई बोली

"भूत नहीं है तो क्या हुआ, लेकिन एक चुड़ैल तो है ना..." - सामने खिड़की के कांच पर दिखते हुए तृषा के अक्स की तरफ इशारा करता हुआ मोहित बोला

"हा हा हा वेरी फनी, वैसे तुझे मैं एक बात याद दिलाऊं चुड़ैल ना आईने में नज़र नहीं आती और मैं दिख रही हूं उस शीशे में, और अब वह काम कर लें थोड़ा, जिस के लिए यहां आए हैं इतना रिस्क उठा कर।" - तृषा चिढ़ती हुई सी बोली

"मैं ही करुंगा काम सारा, तू तो बस टाइम पास के लिए ही मेरे साथ आती है।" - मोहित आगे बढ़ कर एक एक चीज को बारीकी से देखते हुए बोला

"शुक्रिया अदा कर मेरा, कम से कम आती तो हूं मैं कोई और तो आए भी ना तेरे साथ।" - तृषा थोड़ा इतराते हुए बोली लेकिन मोहित ने उस की बातों पर ध्यान नहीं दिया और अपने काम में ही लगा रहा।

उस घर में लगभग खराब हो चुके कुछ फर्नीचर ,थे जो कि कपड़ों से ढके हुए थे और उन कपड़ों पर काफी ज्यादा धूल जमा थी, मोहित ने जब एक कपड़ा हटाया तो तृषा और मोहित दोनों को खांसी आने लगी।

"अहम् अहम् ! मोहित तू काम कर रहा है या सफाई, वापस रख उसे कितनी धूल है" - तृषा खांसते हुए अपने दोनों हाथ मुंह पर रखती हुई बोली

"मतलब है तो यह भूत बंगला ही..." - मोहित थोड़ा सोचते हुए बोला

"क्या मतलब, अभी तो बोला ना भूत वूत नहीं होते हैं सब ड्रामा है और अब क्या भूत बंगला..." - तृषा बोरियत से बोली

"अरे यार! पूरी बात तो सुन पहले वह मतलब नहीं है मेरा, मैं तो इतना बोल रहा हूं रहता तो कोई नहीं होगा यहां, काफी समय से हालत देख कर ही पता चल रहा है तो फिर वह आदमी आखिर करने क्या यहां आया था, जिस की पुलिस को लाश मिली यहां से..." - मोहित अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाता हुआ बोला

"काश! वो आदमी जिंदा होता तो उस से ही जा कर पूछ आती मैं, तेरे इस सवाल का जवाब।" - तृषा उस की बात पर नाटकीय अंदाज में बोली

"जिंदा होता मतलब ओह हां, तृषा यू आर जीनियस! इस बारे में तो सोचा ही नहीं मैंने" - मोहित को तृषा की बात पर जैसे कोई बहुत ही अच्छा क्लू मिला हो या कोई आईडिया आया तो वह उसे शाबाशी देते हुए बोला

"जीनियस तो मैं हूं ही लेकिन अभी याद दिलाने की कोई वजह?" - तृषा थोड़ा सोचती हुई बोली

"ज्यादा उड़ने की जरूरत नहीं है, वह तो बस ऐसे ही बोल दिया मैंने क्योंकि मुझे एक बात समझ आई कि जरूरी नहीं है वह आदमी खुद यहां आया हो; हो सकता है कि मरने के बाद उस की लाश को यहां डाला गया हो। कोई भी जिंदा इंसान क्यों आएगा यहां जबकि इस जगह के बारे में यह अफवाह भी है कि यह प्लेस हांटेड है। " - मोहित सारी बातों पर गौर करता हुआ बोला

"हां, तो वह सिर्फ अफवाह भी तो हो सकती है ना और देख हम दोनों भी तो आए ना यहां और जो नहीं मानते कि कोई जगह हाॅन्टेड होती है वो लोग आ भी सकते हैं।।" - तृषा उस की बात पर बोली

"हां आ भी सकते हैं लेकिन कोई वजह भी तो होनी चाहिए ना जैसे कि हम दोनों के पास वजह है कि हमें तो छानबीन करनी है ना इस केस की पूरी जो कि यहां आए बिना नहीं हो सकती थी।" - मोहित ने जैसे तृषा को याद दिलाया और उसे पूरी बात समझाई।

"हां, तो अभी और कितनी देर चलेगी तेरी यह छानबीन, रोज़ी आंटी जाग गई और अगर उन्हें पता चल गया कि मैं अपने रूम में नहीं हूं, तो फिर वो वहां से निकाल ही देंगी मुझे, और फिर ना मैं तेरे ही फ्लैट में आ कर रहने लगूंगी।" - तृषा ने घड़ी की तरफ देखते हुए मोहित से कहा

"ओह हां, काफी टाइम हो गया ना, चल अब चलते हैं वापस क्योंकि तुझे नहीं झेल पाऊंगा मैं अपने फ्लैट पर।" - मोहित तृषा के सिर पर मारते हुए बोला

"दोबारा फिर से आना पड़ेगा ना यहां?" - वहां से बाहर निकलते हुए तृषा ने शक भरे लहजे में मोहित की तरफ देख कर बोला

"अभी तो बस शुरुआत है मेरी जान... पता नहीं कितने चक्कर और लगाने पड़ेंगे!" - मोहित बत्तीसी दिखाते हुए बोला और फिर वह दोनों उसी तरह कूद कर बाउंड्री वॉल से बाहर निकल गए और कुछ दूर पर खड़ी मोहित की बाइक से बैठ कर वापस अपने घरों की तरफ आ गए।

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एक बड़े से अंधेरे कमरे में, जहां पर सिर्फ नाम मात्र की रोशनी थी और बाकी पूरा कमरा अंधेरे में डूबा हुआ था, लेकिन कुछ लोगों के खड़े होने की परछाइयां फिर भी साफ नज़र आ रही थी और इस के साथ ही एक अजीब सा मनहूसियत भरा सन्नाटा पसरा था उस जगह पर, तभी एक आदमी तेज़ कदमों से चलते हुए उस कमरे के अंदर आया, बीच में पड़ी एक कुर्सी पर बैठते हुए अपने सामने खड़े गिने-चुने लोगों और साथ काम करने वालों पर गुस्से में चिल्लाता हुआ बोला - "एक काम ठीक से नहीं होता ना तुम लोगों से, जो करने बोला था वह भी अब तक नहीं हुआ ना।"

वह निश्चय ही उन सब का बाॅस लग रहा था जो कि किसी वजह से काफ़ी ज़्यादा गुस्से में लग रहा था।

"लेकिन सर! हमने तो अपना काम कर दिया था ना ठीक तरह से और सब सही ही चल रहा है।" - उन में से एक थोड़ा डरते हुए बोला

"क्या, ठीक से हुआ था काम? ठीक से हो रहा होता तो यह हाल ना होता, जो कुछ हुआ है, इस का जवाब है तुम सब में से किसी के पास भी..." - वह आदमी गुर्राते हुए बोला

उस आदमी को इस तरह से गुर्राते और चिल्लाते देख कर अब उनमें से किसी की भी हिम्मत नहीं हो रही थी कि उसकी बात पर कुछ बोलेगा उस आदमी को किसी भी तरह का कोई जवाब दें लेकिन फिर भी आखिरकार हिम्मत कर के एक अधेड़ व्यक्ति बोला - "तुम्हें भी पता है कि सब अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं ‌और वैसे भी हम सब तो तुम्हारे साथी है इस तरह हम पर चिल्लाने से कुछ नहीं होने वाला, मैं तो कह रहा हूं कुछ दिनों के लिए यह सब रोक दो!"

उस व्यक्ति की बात सुन कर उस आदमी ने अपनी डरावनी लाल आंखें उठा कर एक नज़र गुस्से में उस आदमी को देखा लेकिन कुछ बोला नहीं, और थोड़ी सोच में पड़ गया शायद वह आदमी इस वक्त सही कह रहा था।

"बंद कर दें, इतने दिनों की जो हमारी मेहनत है वह सब ? नहीं पूरी तरह से बंद नहीं कर सकते हम, कुछ और सोचना पड़ेगा।" - वह आदमी गंभीरता से बोला

"तो फिर हमें पहले से ज्यादा होशियार रहना पड़ेगा और कुछ वक्त के लिए थोड़ा शांत भी" - उन में से एक आदमी सलाह देते हुए बोला

"हम्म् जैसे भी लेकिन मुझे अब बस काम की बात ही सुननी है और कोई बहाने नहीं।" - इतना बोल कर वो आदमी जिस तरह वहां पर आया था उसी तरस तेज़ कदमों से वहां से उठ कर भी चला गया।

उस के चले जाने के बाद बाकी लोगों ने जैसे राहत की सांस ली और फिर वह सब भी उठ उठ कर वहां से जाने लगे।



क्रमशः

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8 Comments

Gunjan Kamal

07-Apr-2022 11:48 AM

👏👌🙏🏻

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Abhinav ji

06-Apr-2022 08:05 AM

Nice👍

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Pamela

03-Feb-2022 12:30 AM

Very intresting

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